Book Title: Dhurtakhyan
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Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. आपणे बेहुमांथी जे जीते तेने घेर हारनारी दाशी. थइ रहे पछे रमतांथका विनताहारी गइ. अने कहुजीती तेथी ते विनता कगुने घेर दाशी थह रही. पछे शोक्य ने बेरेकद्रुएं विनताने घणो दुख देवा मांड्यो. एम घणोकाळ शुधी दासपणो करतां विनता गर्भवती थइ. पछे त्रण इंदा प्रसव्यां ते. माथी तुरत पोतानुं दाशपणो टालपाने एक इंदु भेषु तेमांथी विछी नीकल्या. वळी केटले काल बीजो इंदु भेषु तेमाथी जंधा रहीत पूत्र नीसों तेणे कहां जे हेमाता तमे पेलो इंदु काचु भेघु अने बीजु पण पुरुं पाक्याविना भेछु माटे हुं अधुरो ज न्मयो तेथी तारो दाशपणो टल्यो नही. हवे बीजो इंदुपालजे तेथी तारा मनोर्थ पुरांथशे. पछे केटले का. ले स्वभावें त्रीजें इंदु भेदायुं तेमांधी शर्प कुलनो काल माहाबलवंत एवो गरुडपक्षी प्रगटयो ते बालपणे रमतो कद्रुना बेटा शर्पने नीत्य मारे पछे शर्व शर्प कद्रु आगल जइ रोवा लागा तेथी कद्रु विनिताने ओलंभो देवालागी अने कहेवालागी जे हे दाशडी तुतारा गुरुडने वार नही तो तु दुखपागीश एम शांभली विनता दुख धरती रोवालागी ते देखी For Private and Personal Use Only

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