Book Title: Dhurtakhyan
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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुल्यिानं. माने जे ठेकाणे धातु होय तेवे ठेकाणे धनमी आशाए ममतां ममतां, शोध करतां मने एवी खबर मळी के पूर्व दिशा ऊपर एक हजार जोजननो पर्वत छे अने ते ठेकाणे सहस्र वेषीरसर्नु एक पील्लछे, अने ते एक जोजननी शिलाथी ढांकेलुछे ते शिला ऊसाडीने ते स्वर्ण कुंडमांधी रस लेवो; पछी हुं एक सोसोजोजन प्रमाणे पृथ्विने क्रमे क्रमे ओलंगीने, ते पर्वत ऊपर जइने ते शिला ऊपाडीने स्वर्ण कुंडमांधी रस लीधो; अने ते स्वर्ण कुंड पाछो तेज शिलाथी जेम हतो तेम ढांकीने मारे घेर अाव्यो, अने ते रसनां योगे करीने धणुएक स्वर्ण ऊपजावीने कुबेर समान धनवान थयो त्यार पछी हुंमोटा भोग भोगवतोयाचकलोकने दान देतो, अने दुनीयामां घणोज प्रसिद्ध थयो, एवी मारी ऋडिने प्रसिद्धि सांभळीने अकस्मात मध्यरात्रे पांचसो चोर माझं घर लूटवा लाग्या ते वखते मारा मनमां एवो वीचार ऊत्पन्न थयो के, हुं जीवते छतां माहारं धन ए चोर लोकोने हाथ केम जवादऊं. ए, चिंतवीने साहसीकपणुं आदरी सस्त्र लइने युद्ध करतां, एक एक वांणनां प्रहारथी करीने में दस दस चोरने मारया, ते देखीने जेम जेम किंकर एकठा For Private and Personal Use Only

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