Book Title: Dhurtakhyan
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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 36 धुर्ताख्यान. हेठे खरी पड्या; अने तेनी उपर हाथीना भमवाथी ते ढगलाओ यंत्रनी परे पीलाईगी ते त्यां तेलनी एक मोटी नदी वहेवा लागी. अने अतीसे कादव थयो, ते कादवनी चीकाशमां हाथी खुची गयो, पछी चीस पाडतो भुख अने त्रषानी पीडाथी हाथी मर्ण पाम्यो. पछी हूं ते हाथीने मुएलो जांणीने ते झाड उपरथी हे, उतयों, अने ते हाथीनुं चर्म उतारीने तेनो मोटो एक दडो कयों अने दस धडा तेलना भरीने पीधा, तथा एक भार तिलनो खड खाईन फरी ते दडो तेलथी भरीने मारी खांधे ऊपाडी गामनी बाहेर एक मारगमां वृक्षनी शाखायें वळगाडीने घेर आव्यो पछी में मारा छोकराने नीसानी आपीने ते दडो लेवासारं वृक्ष पासे मोकल्यो; अने तेणे त्यां दडो दीठो नही, पछी वक्षने मारा छोकराएं हाथीनीपरे मूळसहीत उखेडीने सर्वलोक देखतां ते दडो लई घेर आव्यो पछे हुं त्यांथी परवारो तमारापाशे आव्यो. ए वात में पोतें प्रत्यक्ष अनुभवी छे. माटे जो न मानो तो सर्वधूतने भोजन आपो. अने मानो तो शास्त्रनी शांखे मेळवी आपो.? For Private and Personal Use Only

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