Book Title: Dhurtakhyan
Author(s):
Publisher:
View full book text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. प्रसेछे, जो ए सत्यछे तो तारुं छेदेखें माथु षोरडीना बोर खाय, ए केम असत्य होय. ? // 7 // प्रश्नणालाषाढ,-में मारगमां चालतां एकेक दगले सो सो जोजन भूमी केम ओलंगी? नण्सस, विष्णुए यज्ञनेविषे बळीराज पासेथी त्रण डगला भरीने पृथ्वि मांगी, त्यारे विष्णुएं त्रण ङगलामां कानन सहित सर्व पृथ्वि अति क्रमी, जो ए सत्य छे तो, तुं एक डगलामां सो जोजन भूमी केम ओलंगी न जाय.?॥८॥ प्रएलाषाढ, हे मित्र! में एवी मोटी जोजन प्रमाणनी सिल्या सीरीत उपाडी? ते सास्त्रनी सांखे प्रतीत उपजावो. नतरण सस-राम अने रावणनां युद्धमा शक्ती वाणना प्रहारे लक्षमण मुर्छा पांमीने पृथ्वि उपर पडयो, त्यारे हनुमंते विसल्या औषधीने सारु मूळसहित द्रोण पर्वत उपाडी आण्यो, For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58