Book Title: Dhurtakhyan
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. जोयो नधी; ते माटे संका मुकीने तुं ईश्वरनी पासे जा, एने कदाच जो ईश्वर तारा उपर रुठसे तो पार्वती, मन राखवासारुतुने कोइ प्रकारको उपद्रव करसे नही. एवं इंद्रनु वचन सांभळी अग्नी हीमाचल पर्वतनी गुफामां गयो, त्यां ईश्वरने तेणे संभोगासक्त दीठो, तेवारे इश्वर अग्नीने पोताना संभोगमांअंतराय करवा आवेलोजोइने, तेने मारवा उठयो ते देखीने तेने पार्वतीए वार्यों पछी इश्वरे अग्नीने पुछथु के तुं कोणछे ? त्यारे अनी बोल्यो हुं भीक्षक ब्राह्मणछु, अने भीक्षा मागवा आव्यो छु,त्यारे इश्वरे कडं के मारा वीर्यनु पान कर, एवं कही ईश्वरे पोतानु वीर्य अग्नीने प्रशन करवा आप्यु. पछी अग्नी ए ते पीधु ते वीर्यना तापथी करीने अग्नी दाझ. वा लाग्यो एने महा कष्टवान थयो, तेथी ते वीर्य समुद्रमा जईने वमन करी नाख्यु, ते दीवसथी जगतमां एवी प्रसिद्धी चाली के, सर्व रत्न स. मुद्रमां वीर्यथी उत्पन्न थयांछे; पछी अग्नीना उदरमां कंडक वीर्यनो अंस बाकी रह्यो, ते अंसने जइने पदम सरोवरमा वमन करी नाख्यो, ते वखते ते सरोवरमां ऋत्तीका नामनी छ अपत्सराओ For Private and Personal Use Only

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