Book Title: Dhurtakhyan
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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. घरमा जईने, ईश्वरने पोतानुं दरसण आप तो कदाचीत तुने देखीने ईश्वर संभोग क्रीडा मुकी देसे; एवं देवताओये कह्यु, त्यारे अग्नी बोल्यो, के हे देवताओ! ईश्वर जो बीजी अवस्थामां होय तो पण ईश्वरनी समक्ष कोईनाथी जवाय नही, त्यारे हमणा ईश्वर संभोगी अवस्थामांछे तो तेनीपांसे सीरीते जवाय. कारण के, षटवांगधारी. सूलपाणी, नर्केपाळधारी, समसानवासी, एवो जे ईश्वर, तेनी सनमुख पोतानुं अमंगलीकपणो वांछतो कोण जाय घणुं शुं कहुं जे ईश्वर, घणा जणनां देवतां. लिगोत्थान करीने नाचे, एने तेनाथी ईद्र सरिखानेपण बीक लागे तो मारी शी गुजास. एने जो कदापी ईश्वर कोपायमान थाय तो मारी शी गती थाय, ते माटे हे देवताओ!मने आसंकटमां नाखसो नहीं; तेवारे इंद्रे अग्नीने कह्यु, के. हे अग्नी! तुं ईश्वरथी बीहीतो नहीं. केमके, ए पार्वतीने वशछे जे पुरुष कोईथी दमाय नहीं तेने स्त्री एक दीवसमां दमवाने समर्थ छे माटे जो पार्वती ईश्वरने एकार्य करवाने कहे तोपण ईश्वर ते करछे. सुं तें ईश्वरनी अर्धामा जे पार्वती तेनाथी बीहतो For Private and Personal Use Only

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