Book Title: Dhurtakhyan
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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. द्रोणपर्वत उपरथी विसल्या औषधी लावीने, लक्षमणने शक्ति बांण लाग्यु हतुं ते काढयुं त्यारे, छेदांग वानराओ जीवतां थयां ए साचुं छे तो ते जे कहुं ते पण साचंछे. 5 तथा हे मित्र एलासाढ ! स्कंधनी ऊत्पत्ती सांभळी नथी? एतो घणा ग्रंथोमां प्रसीद्ध वानछे जो तें नही सांभळी होय तो सांभळ कहुंछु, एक वखत हिमाचल पर्वतनी गुंफामां पार्वती संगाथे ईश्वरने संभोग करतां देवताइ हजार वर्ष वहि गयां, अने ते वखते देवताओने तारक नामना दैते बहुज ऊपद्रव करवा मांडयो पछी सर्वे देवतांओतारक दैत्यने मारवानोउपायचिंतववा लाग्या,जे इश्वरनां वीर्य विना बीजो कोइ तारक दैत्यने मारी सकनार नथी;अने इश्वरनी पासे अग्नी सिवाय बीजो कोइ पण जइने केहेवा लाग्या के, अनर्थनां करनारा दैत्यनो नाश करवोछे; माटेहे उपकारी पुरुष ! तुं देवताओना समुदाय उपर आ वखते उपकार कर,कारण के सर्वे देवताओ हाल. मां चिंतारुपी समुद्रमांबुडेलाछे, माटे तारा शिवाय बीजु कोइ पण उगारवाने समर्थ नथी, माटे तु गुफा For Private and Personal Use Only

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