Book Title: Dhurtakhyan
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -- धुर्ताल्यानः UAE श्लोक स्त्रीणांकृतेन्नातृयुगस्यभेदः।। संबंधभेदेस्त्रियएवमूलं // अप्राप्तकामाबहवोनरेंज्ञ॥ नारीभिरुबेदितराजवंशाः // 1 // हवे सर्वदेवे मळीने तिल तिल भागनी अपसरा उत्पन्न करी, तो तारांछेदेला अंगापांग मेळव्यां तेथी तुं केम नहि नीपजे. 3 वळी एक द्रष्टांत कहुंछु ते सांभळ के, पवननो पुत्र हनुमंत ते बाल अवस्थामा पोतानी माता अंजनीने पुछवा लाग्यो के, हे मातुश्री, हुंदुख्यो थाऊं तो सुं खाउं? तेबारे अंजनी बोली के, हे पुत्र !राता वनफलं खाजे; त्यार पछे कोईक वेळांये हनुमंते उगतो सूर्य देखीने जाणे रक्त वनफळछे; ते लईने खाउं, एवं पीचारी तेने ग्रयो, ते वारे तेणे सलनां प्रहारथी हनमंतनुं सतखंड चुर्ण कर्यु ते हनमंतनी माता अंजनी जोईने विलाप करवा लागी, त्यारे पवने पानीते For Private and Personal Use Only

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