Book Title: Dhurtakhyan
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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . ... . . धुर्ताख्यान.. नए सस-पुर्वे यमदग्नी नामनो ऋषि हतो,तेनी रेणुका नामनी स्त्री हती,एने तेस्त्रीना सिपळना महिमाथी कुसुमित वृक्ष नमताहतां,तेवामां कोई राजा अश्व उपर बेसीने नीकल्यो एनेते राजा रेणुकाने देखीने तेनां मनमां अभीलाष उत्पन्न थयो, पछी केटले क दीवसे शीळ भंग थवाने लीधे वृक्षने अणनमतां देखी यमदग्नी ऋषिय, पोतानां पुत्र परशुरामने कडे के एपापिणी रेणुकार्नु मस्तक छेदीनांख.परशुरामे पितानी आज्ञाए करीने पोतानी माता रणुकार्नु मस्तक छेदी नाख्यु पछी यमदग्नीये पोतानां पुत्रने अाज्ञाका री जांणीने ते उपर संतोष थई कहुं के हे पुत्र,काईवर माग, तुं जे मागे ते हुं आपुं; त्यारे पुत्रे एवं मांग्यु के हे पिताजी! मारीमाताजीने पाछी संजीवन करोते वारे यमदग्नी ऋषिये कहुं तथास्तु एवं कहेतावारने रेणुका पाछी तत्काळ जीवती थई. हवे तुं वीचार कर के, ए वात जो सत्यछे तो तुं जीवतो थयो ते असत्य केम कहेवाय? 1 वळी बीजो द्रष्टांत कहुंछु ते तुंसांभळ, पुर्वे जरासंध राजा कृष्ण संगाते युद्ध करतांपोताना शरीरनां थे For Private and Personal Use Only

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