Book Title: Dhurtakhyan
Author(s): 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुतीमान थाय तेम सर्वे चोर एकठा थई प्रोध करीने माहारी अपर तुरी पच्या अने मारा माथानां करकेकटका करीने पासे एक बोरडीनं झाडतं तेमां मारामाणां ने बांधी माझं घरबार छूटीने चोरलोको जतारखा पछी ते कुंडळसहीत मामाच पोरडीमा बोर खावा लाग्यु, अने जेवारे प्रभाते सूर्योदय थयो ते वखते मारा माथाने बोरखातुं जोइ जीवतुं जा. णी लोकोए लीधु, एने बीजां सर्व मारा अंगोपांग मेळवीने ते उपरे माथाने मुक्युं, पछी हुं पाछो जेवो पुर्वे हतो, तेथी वीशेशनिरुपम रुपलावण्ये करीने विराजमान थयो. ए माहारं प्रत्यक्ष अनुभवेलुं छे.माटे जो ए वात नमांनो तो सर्वधर्तने भोजन आपो, ने जो खलं मानो तो सास्त्रनी सांखे मेळनी आपो. न सस- हे एलाषाढ, ते जे कडं ते सर्वे खरुंज छे. एमां कांई खोटुं नथी; कारण पुराण, स्मृति, भारत, रामायणादिक ग्रंथोनेविषे एवी घणी वातो छ. प्रण एलाषाढ--त्यारे मारो मुवेलो मस्तक शजीव केम थयो. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58