Book Title: Dhurtakhyan
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. गरीमा लइगयो अने तुं फोगट अरण्यमा फरेछे, मारे तुं ऊतावळथी जइने रामचंद्रने समाचार आप अने मारीपण पांखो रावणे सीतानीसारु युद्ध करतां छदीने मने पृथ्वि ऊपर नाख्यो छे, एवं सांभळीने हनुमंते जटायु प्रते कह्यु के, ते रा. वण साये युद्ध कयु ने मने सीतानां समाचार पण कधा तेथी तारुं भलं थाओ. एवं हनुमंतनु वचन सांभळतांज जटायु पक्षीने पोतानीगएली पांखो पाछी प्रात्प थई. अने आकास मार्गे ऊडीने स्वर्गेगयो. माटे जटायु पक्षी पर्वत जेवो मोटो हतो, तो ढीक पक्षणी मोटी केम न होय ? 7 प्रकंदरीकः-ऊपर कह्या प्रमाणे एलाषाढ़ें उत्तर आप्यो. ते सांभळी कंडरीक केहेवालाग्यो. हे एलाषाढ ! हवे तेंजे अनुभव्यु, दीडं अने सांभल्युं होय ते तुं कहे. न० एलाषाढः--हुं यौवन अवस्थामां, धनने लो. भे धातुविदांदीक व्यसनने लीधे करीने,जगतमां धननी आसाए बील्ल पर्वतादी स्थानको मांहि, जंत्रमंत्र For Private and Personal Use Only

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