________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. वळी एक रामायणनु दृष्टांत कहुं छु ते सांभळ. रावण जेवारे सीतार्नु हरण करीने चाल्यो, तेवारे जटायु नामनो पक्षी तेनी सामे युद्ध करवा लाग्यो, रावणे चंद्रहास खड्गे करी ते जटायु पक्षीनी पांखो छेदी, तेथी ते जटायु पक्षी पृथ्वि ऊपर पडयो ते व. खते सीताजीए ते पक्षीने एवी अवस्थामांजोइने कछु के हे पक्षी ! तारी पाखोनुं छेदन थयु, पण मारा शीयळ व्रतनांप्रतापथी कहुंछुके तुंने रामचंद्र जीनां दुतनांदरसण थशे, तेवखतेतारीगएली पाखो पाछी आ वशे. ते पछी केटलाएक दीवसे रामचंद्रनी आज्ञाधी सीतानीसुद्ध लेवासारु हनुमंत फरतो फरतो जटायु पक्षीनी नजीक आव्यो, अने वीचारवालाग्यो के, आ कोई मोटो पर्वत देखायछे, माटे एनी ऊपर चडीने जोऊं तो सर्वे पृथ्विमंडळ देखासे. एवं चितवन करीने हनुमंत ते पर्वतपासे गयो तेवारे हनुमंतर्नु मन वीचारमा पेठोके आ तो कोई पक्षी छे, पर्वत नथी तेटलामां जटायुए तेने पूछयु के तमे कोणछोने क्याथी आव्यो, त्यारे हनुमंतें कह्यु के हु-रामचंद्रनो दुत छु अने सीताजीनी शोध करवासारु नीकल्यो छु. पछी जटायु बोल्यो के सीताजीने तोरावण लंका न For Private and Personal Use Only