Book Title: Dhurtakhyan
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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 धुलाख्यान. ..त्यारे कृष्ण क्रोध चडावीने कठण वचनोवडे को का लाग्यो के, तुंमारो चेटक छे. रे मूर्ख!तने बोल तां कांई लाज आवती नथी? जे मुखमां आकाश अने भुमी गाळछे, पर्वत दाहाछे, समुद्र जिव्हाछे एवा मारा मुखमां तु पेशीने सर्व जगतने जो तो तने देखाशे. तुंतोमारा नाभीना कमलमाथी उप्तन्न थयेलोछे ते मारीपासे एम बोले ए सारं लागतुं नथी. ए उदाहरणथी समजी लेवु. 5 जस्तपभावेणनलिआई॥ तंचेवकहकेयरघाइ॥ कुमुआई अन्नसंभाविआई // चंदनवहसंति // प्रकंदरीक-एवा मोटा आकारनी ढीक पखणी कोईए शांभळीछे? के जेना पेटमां अजगरादिक सर्व समाई गया, एनो उत्तर आपो. - न एलाषाढ-भाई द्रौपदीना स्वयंवर मंडपमांनांधनुष्यमांपर्वत,अग्नि समाया हताते वात गुंतें शांभळी नथी? जो न शांभळी होय तो शांभळ, For Private and Personal Use Only

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