Book Title: Dhurtakhyan
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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. जो अनेक माहासिल्याओ सहित एवो जे द्रोण पर्वत ते हनुमंते उपाडयो, तो तुं एक जोजन प्रमाणनी सिल्या केम न ऊपाडे, ? तथा लोकमां एवं संभळायछे के पृथ्वि वधवा मांडी. स्यारे विष्णुएं वराह रूप धरीने पृथ्विने राढ उपर ऊपाडी ए सत्य छे तो ते जे सिल्या उपाडी ते पण सत्य छे. // 9 // इति धूर्ताप्राख्याने तृतियमाख्यानकं. प्रश्नएलाषाढ,--हे मीत्र सस, हवे ते जे अनुभव्युं दीडं होय ते कहे ? उत्तरसस,-हुँ सरद ऋतुमां एक गामथी बाहेर दूर पर्वतनीपासे एक खेतर हतुं त्यां गयो, ते वेलाएं एक मदोन्मत्त हाथी पर्वत उपरथी नीचे उतरीने मने मारवा दोडयो, हुं नासवानुं ठांम जोतो जोतो एक अती मोटोतिल वृक्ष देखीने ते वृक्ष उपर चडयो, पछी हाथीएं मने हेठो पाडवा सारं वारंवार ते तिल वृक्षने धंधोळवा मांडयुं, तेथी करीने तिलनां अनेक ढगलाओ ते वृक्ष उपरथी, For Private and Personal Use Only

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