Book Title: Dhurtakhyan
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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. के ब्रह्माजी विष्णुनी नाभिधी बाहेर नीकल्यो ने कमल अटकी रह्यो ए साचुं होय तो तुं कमंडलनी ग्रीवाथी बाहेर नीकल्यो छतां हाथीना वालाग्रनो अंत अटकी रह्यो एमां शुं अयुक्त छे. प्रश्न मूलदेव- हुं कमंडलनी ग्रीवा द्वारें बाहेर केम नीकल्यो ? उत्तर कंडरीक- ते ऊपर एक भारतनु वचनकहुं छं. कोई एक समये ब्रह्माने तपस्या करतां दिव्य सहस्र वर्ष थह गयां एवं देवताओ जाणीने क्षोभ ने पाम्या थका विचार करवा लाग्या के हवे एने विघ्न करवो जोइए त्यारे इंद्र कहेवा लाग्या के पुवें महादेवें अग्नि कर्म करतां ऊर्धवस्थित वस्त्रा पा र्वती दीठी ते वेला शिवने क्षोभ थयुं अने मदननावेगथी वीर्य स्खलित थयुं तेथी वस्त्रादिक मलिन थ. यां ते खंखेरतां पासे एक कलशो पडयो हतो तेमां वीयर्ना बिंदुं पडयां तेथी द्रोणाचार्य उत्पन्न थयां एवी रीते इश्वर पण स्त्रीने जोइने क्षोभने पाम्या तो बीजानु शुंकहे. एक श्रीवीतराग देवाधिदेव त्रै. For Private and Personal Use Only

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