Book Title: Dhurtakhyan
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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान, श्लोकः तव प्रसादात्पवनप्रसादात् // नर्तुश्चते देवितव प्रसादात् // त्रिनिः प्रसादै रनुगम्ययसोय || तीगो मयागोष्पदवत् समुद्रः // 1 // तमारी कृपा अने पवननी कृपा वडे तथा तमारा भार श्री रामचंद्रजीनी कृपाथी ए बणना प्रसादथी एक पगनी पेठे हुं समुद्रने तरीने आंही आव्यों. ए उपरथी विचार कर के भुजा वडे हनुमान आखा समुद्रने तरी गयो त्यारे तें गंगा नदीने भुजाथी तरी ए कांह मोटी बात नथी 7 . प्रश्न मुलदेव--में छ महिना सुधी माथेजलधारा केम धारण करी? उत्तरण कंडरीक-ए पण ब्राह्मणनी श्रुतिओ ऊपरथी सिद्ध थाय छे ते शांभळ, लोकना कल्याणने अर्थे देवताओए प्रार्थना करीने गंगा For Private and Personal Use Only

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