Book Title: Dhurtakhyan
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. जाणीने ईश्वरें ब्रह्मानु पांचमुं मुख पोताना नखोवती उखेडी नाख्युं तेथी ब्रह्मा कोपथी आंधलो थयो थको पोताना डावा हाथनी तरजनी आंगली बडे पोताना कपाल उपर क्रोधना आवेशथी पशीनो आ. व्यो हतो ते लुछीने पृथ्वी उपर मुक्यो तेथी ए. क बलवंत स्वेत कुंडली नामे पुरुष उत्पन्न भयो ते. वोज ब्रह्मानी आज्ञामागीने ईश्वरनी पाछल दोडयो तेथी ईश्वर भयने पामीने नाशतो नाशतो बद्रीकाश्रममा जईने नियमे करी विष्णुने मली कथु के मने शिक्षा आपो त्यारे विष्णुए पोताना कपालमां थी लोहीनी शीर खोलीने तेनी हेठल ईश्वरे ब्रह्मानु मस्तक पकडयु तं दिव्य सहस्त्र वर्ष सुधी पण रुधिर धाराएं भरायुं नही. पछीतेने इश्वरे एक आंगलीथी लुछयुं तेवारे ब्रह्मानामस्तक कपालें एने विष्णुनी रु. धिरधारा तथा ईश्वरनी आंगली ए त्रणेना संयोगेरक्तकुंडली नामे एक पुरुष उप्तन्न थयो तेवोज ईश्वरनी आज्ञा मागीने श्वेत कुंडलीनी साथे लडवालायक थयो पछि ते बन्नेनी लडाई थई तेमांदिव्य सहस्त्र वर्ष वीति गयां त्यारे देवताए ते युद्धनुं निवारण करयु अने ते बने योद्धामांनो एकने इंद्रने आपी For Private and Personal Use Only

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