Book Title: Dhurtakhyan
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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. ऋषिनां आश्रममा जइने तेनी आराधना करी. ऋषिए तेनी ऊपर कृपा करी तेने एक चरु मंत्रिने आप्युं ने कहां के वनमां जइने झाडीनीघटामां बेशीने ए चरनु भक्षण करजे तेथी तने सो पुत्र थशे सारे तेणे वांशनी झाडीमां बेशीने ते चख्नु भक्षण करीने पोताने घेर गई एवा समयमां ते वंशजालमा एक घणा कालनो तप करनारो गांगिल नामनो ऋषि हतो, तेणे नदीने कीनारे एक अपछराने नग्न स्नान करतां दीठी तेने जोइने मुनी क्षोभने पाम्यो तेथी तेना शरीरमांधी एक वी. र्यनोविंदु गळीने नीचे पडयो, ते दैवयोगे वंशनी नाल मांपड्यो तेना प्रभावथी नवहजार गजना प्रमाणनो बलवंत एवो कीचक नामनो पुत्र प्रगट थयो अने जेम जेम ऋषि देवांगनाने जोवा लाग्यो तेम तेम वीर्यना बिंदुओवांशनी नळीमां पडवा लाग्यांतेथी बीजा न. वाणुं पुत्र पेदा थया. पछी ते ऋषि शतवीर्य बिंदुसहित वांशनी नळी त्यां मुकी दईने जतो रह्यो ए वातनी विराट राजाने खबर पडतां तेणे ते नळी रखावी लीधी तेमांथी सर्वांगोपांग सहित सो पुत्र नीकल्या तेओने विराटराजानी स्त्रीए पोताना पुत्र मानी लीधा तेमाटे तेनापुत्र वंशमांथी उत्पन्न थएला कहेवाय छे एऊपर For Private and Personal Use Only

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