Book Title: Dhurtakhyan Author(s): Publisher: View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. हशे तोतमारं बोलवू पण साचुं छे. हाथी कमंडलम केम मायो ईत्यादिक जे तमे पूछ्युं तेनुं समाधानशांभलो ब्रह्माना मुखथी ब्राह्मण नीकल्या, भुजाओथी क्षत्रिय नीकल्या, झांगथी वैश्य नीकल्या अने पगथी शूद्र निकल्या. ए चार वर्ण आखा जगतमांछे, तेनी गणना करतांअंत आवे नही, ते सर्व लोक ब्रह्माना शरीरमां समाया तो तमे अने हाथी ए ये कमंडलमां समाया तेमां श्यो संशय छे, तथा जे ईश्वरना लिंगनो अंत लेवासारं तेने मा. पवा देवताना हजार वर्ष सुधी ब्रह्मा ऊंचो चाल्यो अने विष्णु नीचो चाल्यो तो पण ते लिंगनो अंत आव्यो नहीं. ते पार्वतीना शरीरमा केम समायो! तेमज कमंडलमां हाथी समायो एमां कयो दोष छ,' वली भारतमा व्यास ऋषिए कहुं छे के वंशन गांठमांथी कीचक नामना सो भाइओ उत्पन्न थया छे, कीचक ए नाम उपरथीज ए जणाई आवेछे के वांसने कीचक कहेछ तेमांथी उत्पन्न थया तेथी की चक एवुनाम पड्युं तेनी कथा आवी रीतेछे ते सां ळ.विराट राजानी अग्रमहीषिए पुत्रनी वांछनाए ए For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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