Book Title: Dhurtakhyan Author(s): Publisher: View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान थयो थको आ शरीरने शाने आधारे राखं, के शरण ले उं तथा कइ जगामांप्रवेश करूं एवी चिंतव करी मरणना भयवडे काई विचार न करता हूं मंडळमांहे पेठो ते जोइने ते हाथी पण मारी पाछ दोडीने पोतानो शुंडादंड ऊंचो करी लाल चोल ने करी मारी पाछल ते कमंडलमा पेठो त्यारे हुं मह भयने पामीने खूणे खांचेथी नाशी जवानी जगा जं तो ने हाथीने छ महिनासुधी भमादीने ते कमंडलनी ग्रीवामाथी बाहेर नीकल्यो. शारी पाछल ते हाथी पण नीकल्यो ते वखते ते कमंडलनी ग्रीवाना छिद्रमां हाथीना एक चालना अग्रभागनो अं वळगी रह्यो तेथी ते हाथी त्यां रोकाई रह्य अने मारी पाछल आवी शक्यो नही त्या हूं निर्भय थईने आगल चाल्यो. केटलुं / चाल्या पछी रस्तामां ऊंडा पाणीधी भर. गंगा नामनी नदी प्रावी तेने जोड़ने हुं व्या लथगो. जवानी रस्तो ते शिवाय कोइ बीजो नहन ते पीते नदीने हाथवतीतरीने मारा स्वामीने घेर / यो त्यांछ महिना भुख पातर वेटिने तथा म उपर जलधारा सहन करीमीती वंदना .री For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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