Book Title: Dhurtakhyan
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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. 'च लागु पडशे नेतेणें सर्वेने खावाने आपq अने जे रत रामायणादिक इतिहासो तथा भागवतादिक णोना वचने करी कहेली वात खरी ठेरावी आपशे ने आ सर्व माहजन साथने आश्चर्य उपजावे एवी तोथी रंजन करशे ते बधा धूर्तमां मुख्य तथा महा डिमान गणायो छतां ते सर्वने भोजन देवाना परचमाथी छूटशे. एवं सांभळीने तेने बीजो कंडरीकनामा धूर्त कहेवा लाग्यो के तमे घणुं सारूं कर्तुं अने तमे सर्वथी मोटा माटे प्रथम तमेज जे सांभल्युं अनुभव्युं होय ते ही संभळावो त्यारे मुलदेव बोल्यो. प्रश्नण्मूलदेव-मारी यौवन अवस्थाना समये छेतपदार्थनी अभिलाषाथी माथाउपर जलधारा हन करती थको मारा स्वामीने प्रसन्न करवा सारु पदा मेलववानी इच्छा करीने साथे भातुं लईने i: हायनां छत्र बीजा हाथमा कमंडलु वगेरे साह्य ने हु रस्तामा चाल्योने मार्गमा एक पर्वत मोटो मदोन्मत्त वनगज (जंगली हाथी) मारी चे आवतो में दीठो त्यारे हुं भयथी कंपायमार For Private and Personal Use Only

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