Book Title: Dhurtakhyan Author(s): Publisher: View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धुर्ताख्यान. जाणी तो तथा सर्व धुतानो शिरोमणि ह अंने बीजा तेनाथी उतरती पदवीना हता ते बधा त्यां वशी रह्या छे एटलामां दैवयोगे में वर्षाद आव्यो तेथी कूवा, तलाव, तथा वा वगेरे सर्व जलस्थानक भराई गया. पृथ्वी उप कीचड घणी थयाथी रस्तामां चलाई शका नही, एवं थयु. वर्षाद घणो पडयो तेथी को लोक रस्तामा फरी शके नही अने कोई कां क्रियापण करी शके नहीं तेने लीये ते वष समयमां ते धूतारा लोको भूख तथा तरश' पीडाया छतां पोत पोतामां कहेवा लाग्य। कोई माणस घरथी बाहेर नीकलतो नथी. जे ठगीने धन लावी निर्वाह चलावीए आंद आपणने खावानेकोण देशे ? त्यारे मुलदेव सर्व धूर्तामां मुख्य हतो ते कहेवा लाग्य जेणेजे सांभल्युहोय, तथा अनुभव कर्यो हो वगेरे जेवी जेने खबर होय ते सहु पोत पोत' जाणेली वात कही संभलावो, ते सांभर तेने खोटुं कहेशे अथवा ए केम मनाय / संशय कहाडशे तेना उपर आ सर्व धूर्तानो खाव For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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