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अनुत्तरो पुरिसदम्मसारथि सत्था देव मनुस्सानं बुद्धो भगवा'ति।
यही हैं भगवान, अरिहंत, सबके पूज्य, स्वयं संबुद्ध तथा दूसरों को बोधि देने वाले, विद्या और आचरण से संपन्न, सन्मार्ग पर चलने वाले, लोक के रहस्यों को जानने वाले, अनुत्तर महापुरुष। जैसे बिगड़े हुए घोड़े को अच्छा सारथी मार्ग पर ले आता है, वैसे ही देव और मनुष्यों को यह सुपथ पर लाते हैं।
लक्ष्मीचंद जैन
160, सिद्धार्थ एन्क्लेव, नयी दिल्ली-14
भारतीय ज्ञानपीठ का प्रारंभ, संचालन एवं विकास करने वाले श्री लक्ष्मीचंद जैन विगत पांच दशकों से हिंदी भाषा की सेवा में रत एक यशस्वी नाम हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार, जो हिंदी का नोबल पुरस्कार कहा जाता है, इसकी योजना आपने ही बनायी तथा 14 भारतीय भाषाओं की सर्वोत्तम पुस्तकों के चयन हेतु कमेटियां गठित करने और पुरस्कृत करने का कार्य भी आपने सम्हाला हुआ है। श्री जैन अनेक कविताओं के रचयिता हैं एवं दूरदर्शन और आकाशवाणी द्वारा इनकी वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। आपकी पुस्तकों में नए रंग नए ढंग', 'कागज़ की किश्तियां' तथा 'अंतर्द्वदों के आरपार' विशेष उल्लेखनीय हैं। आपकी संपादित पुस्तकों में ग्यारह लेखकों की रचनाओं वाली पुस्तक 'ग्यारह सपनों का देश' विशेष सराहनीय है। इसके अतिरिक्त, श्री जैन हिंदी साहित्य की उत्कृष्ट पत्रिका. 'ज्ञानोदय' तथा भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित साहित्य का संपादन करते रहे हैं।