Book Title: Dhammapada 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 15
________________ हसीद, सूफ़ी जैसी अनेक साधना पद्धतियों के गूढ़ रहस्यों पर उन्होंने सविस्तार प्रकाश डाला है। साथ ही राजनीति, कला, विज्ञान, मनोविज्ञान, दर्शन, शिक्षा, परिवार, समाज, गरीबी, जनसंख्या-विस्फोट, पर्यावरण, संभावित परमाणु-युद्ध का विश्व-संकट जैसे अनेक विषयों पर भी उनकी क्रांतिकारी जीवन-दृष्टि उपलब्ध है। इन सब विषयों का अध्ययन और उन पर गहरे चिंतन के लिए ऋषि की दृष्टि चाहिए जो सर्वज्ञता के छोरों को छूती हो। अदभुत संग्रहालय है ओशो की पुस्तकों का, जिन्हें उन्होंने पढ़ा ही नहीं है, उन्हें स्थान-स्थान पर चिह्नित भी किया है, और टिप्पणियां भी दी हैं। एक पूरा जीवन चाहिए इस काम के लिए। किंतु जीनियस के लिए यह मात्र एक अंश है। चमत्कार तो यह है कि उन्होंने अध्ययन करके इन्हें एक तरफ उठाकर रख दिया, और अपने आपको ज्ञान के भार से मुक्त कर लिया। गहरे उतर गए ध्यान, चिंतन और तर्कातीत, अतींद्रिय के अनुभूति-लोक में। वह स्वयं बुद्ध हो गए। ऊपर मैंने लिखा ओशो के प्रभाव के और उसके अमरत्व के दो कारण हैं-एक का मैंने अभी-अभी उल्लेख किया। दूसरा कारण है, जो 'एस धम्मो सनंतनो' के संबंध में भी प्रासंगिक है, ओशो की करुणा, उनकी प्रेम करने और बांटने की ईश्वरीय क्षमता। क्या कारण है कि यह पुस्तक उर्दू साहित्य के चुने हुए अशआर से भरी हुई है, हिंदी-गीतों की झंकार से निनादित है। ओशो वह व्यक्ति हैं जिन्होंने जीवन के अक्षय रस को संचित ही नहीं किया, उसे सर्जित भी किया। वह आपसे बात करते हैं तो आपको सामने रखते हैं जाग्रत भाव से कि आप भी जाग्रत रहें। आप अपने मन को उनके शब्दों में प्रक्षेपित न करें। शब्दों को सुनें; सुनें भर जब वह वाग्गंगा प्रवाहित हो रही है। निमज्जित हों। इस तरह उद्गता अर्जित करें। ओशो आपके कल्याण मित्र हैं। वह अपने आप को अंतःप्रेरणा के आधार पर, आपके स्तर पर ले आते हैं और शेर कहकर, कवितांश कहकर, चुटकुले सुनाकर, आप-बीतियां बताकर आपको पुलकित करते हैं-नए अनुभव की भावभूमि के लिए तैयार करते हैं। बीज पड़ता है, अंकुर फूटते हैं, बिरवे लहलहाते हैं, कलियां उगती हैं, चटखती हैं, फूल खिल उठते हैं, हवा गंध-वाही हो जाती है, पाखी उड़ान भरते हैं, भंवरे गूंजते हैं, आप आनंद में मतवाले हो जाते हैं : आज की सुबह मेरे कैफ का अंदाज़ न कर दिले-वीरां में अजब अंजुमन-आराई है यह ज़मीं ख़ित्तए फ़िरदौस को शर्माने लगी गुले-अफ़सुर्दा से नौ-रोज़ महक आने लगी

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