Book Title: Dhamma Kaha
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti
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धम्मका a 12
(३) उढायणरायकहा
एगदा सग्गे सोहम्मिंदो सगसभाए धम्मचच्चाविसए वरिवट्टइ। सोहम्मिंदेण असंखदेवेसु मज्झे वच्छदेसस्स रोरयपुरणयरवासी उद्दायणरायो पसंसिदो । सो कहेदि- णिव्विदिगिंछागुणे ण को वि तेण तुल्लोत्थि । तस्स परिक्खाकरणट्टं एगो वासवदेवो आगदो। तेण विकिरियारिद्धीए एगमुणिरूवं णिम्माविदं । तस्स सरीरं अइदुग्गंधं गलिदकुट्टेण सहिदं च अत्थि । सगगिहंगणे समक्ख समागमुणिं दिट्टण भत्तीए णिवेण पडिग्गहिदो। णवहाभत्तिपुव्वियं भोयणं दिण्णं । मायाए मुणिणा सव्वाहारजलं गिहीदं । तदणंतरं तत्थेव अच्वंतदुग्गंधियवमणं कदं । दुग्गंधेण सव्वे परिजणा पलाइदा । राया सगमहिसीए सह मुणिरायस्स परिचरियाए संलग्गो । पुणो वि मुणिणा उहयस्स सरीरे वमणं कदं । तो वि 'मए किंचि विरुद्धं भोयणपाणं दिण्णं' त्ति भएण अप्पणिंदणं कुव्वतो खमं जाचेइ। तेण सगसरीरं पक्खालिय मुणिसरीरं पक्खालिदं । 'मुणिरायस्स सरीरं रयणत्तएण पवित्तं ण घिणाजोग्गं' एवंविह भावणं तस्स परिलक्खिय देवो मायारूवं चइऊण सगसरूवे पयडेइ । सव्ववृत्तंतं कहिय रायस्स पसंसणं किच्चा सग्गे गदो। पच्छा सो राया वड्ढमाणभयवंतस्स पादमूले तवं गहिऊण मोक्खं गदो। राणी पहावदी तवपहावेण सग्गे देवो भवीअ ।
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विज्जावतो लोगे पसंसिदो होदि सगपरजणेहिं । मउडेसु य मोलिव्व अग्गिमट्ठाणे हि वट्टेदि ॥ - अनासक्तयोगी २/४

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