Book Title: Dhamma Kaha
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti

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Page 43
________________ EHET ææ 42 दासी तग्घरं गदा तो वि बाम्हणीए रयणाई ण दिण्णाई। पुणो ताव राणीए पुरोहिदस्स कडारिसहिदजण्होववीदं जिदं । णिउणमई तं गहिय पुणो तग्गिहं गंतूण तहा कहेदि । तं देक्खिय आसासंती सा बाम्हणी चिंतेदि- 'जदि ण हु दामि तो सामी रूसिहिदे।' तेण भयकारणेण ताए रयणाणि दिण्णाणि। णिउणमई ताणि राणीअ हत्थे समप्पेदि । राणी राइणं दिक्खावेदि। राया ताणि रयणाणि बहुसु अण्णेसु रयणेसु मेलाविय तं विक्खित्तं कहेदि- सगरयणाणि परिलक्खिय घेप्पसु। सो वि णियरयणाणि एव पेक्खिय लेइ। तदा तेहि- 'एसो खलु ण विक्खित्तो' किंतु वणियपुत्तोत्थि' त्ति अब्भुवगदं। तदणंतरं राइणा सच्चघोसो पुट्ठो किं तुमए इदं कज्ज कदं? सो कहेदि- राय! किं इदं कज्जं जुत्तं, अजुत्तं कज्ज अहं कधं काउं सक्कामु। तस्स असच्चं जाणिय कुविदेण राइणा तदटुं तिण्णि दंडाई णिद्धारिदाई। पढमं तु सो तिथालीपमाणं गोमयं खादु। मल्लाणं तिमुक्काणि सहेदु। असेसधणं मझं पदाए। तेण वियारिय पढमं गोमयं खादं पारद्धं । असमत्थे जादे सो मल्लाणं मुक्काणि सहेदि। तत्थ वि असमत्थे जादे तेण सव्वं धणं दिण्णं। एवं तिविहदण्डाणि भुंजिय मदो। तिव्वलोहकारणेण मरिय भंडागारे अगंधणजादिवंतो सप्पो हुओ। तत्थ वि मरिय दिग्घसंसारी जादो। हियए विज्जदिसल्लंदिस्सदिणियमेण मुहे पुरिसस्स। चिट्ठदि कदा ण तेलं जलम्मि गब्भे मुणेयव्वं॥ -अनासक्तयोगी १/१०

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