Book Title: Dhamma Kaha
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti

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Page 66
________________ धम्मकहा 8865 (२४) चाणक्य मुनि की कथा पाटलिपुत्र नगर के राजा नन्द थे। जो अपने तीन मन्त्री कावि, सुबन्धु और शकटाल के साथ में राज्य का पालन करते थे। राजा के पुरोहित कपिल की देविला नाम की स्त्री से चाणक्य नाम का पुत्र था। एक बार कावि मन्त्री ने नन्द राजा को कहाराजन्! निकटवर्ती राजा लोग राज्य के ऊपर चढ़ाई करने के लिए आ रहे हैं। राजा कहता है- धन देकर के उन्हें रोक देना चाहिए। कावि ने यथायोग्य धन देकर के उन्हें रोक दिया। नन्द राजा ने एक बार अपने भाण्डागरिक को धन के विषय में पूछा? उसने कहा- कवि ने सारा धन निकटवर्ती राजाओं को प्रदान कर दिया है। नन्द ने क्रुद्ध होकर के परिवार के साथ कावि को एक अन्ध कूप में डाल दिया। वहाँ पर संकट द्वारा पर एक-एक सकोरा में भोजन और थोड़ा सा जल चमड़े के थैले में रस्सी बाँधकर के प्रदान किया जाता था। कावि ने कहा- कुटुम्ब सहित नन्द का जो विनाश करेगा। वह यह भोजन करे। सबने कहा- इस कार्य को तुम ही करने में समर्थ हो। तब उसने वहीं एक बिल को बनाकर के भोजन करते हुए तीन वर्ष निकाल दिये। समस्त परिवार जन मरण को प्राप्त हुए। एक बार निकटवर्ती राजाओं के द्वारा पुनः नन्द राजा को क्षोभ उत्पन्न किया गया। राजा कवि का पुनः स्मरण करता है। राजा कावि को पुनः मंत्री पद पर प्रतिष्ठापित करता है। एक बार नन्द का विनाश करने के कावि अरण्य में किसी पुरुष की गवेषणा कर रहा था। उसने वहाँ देखा बहुत छात्रों के साथ में एक पुरुष दर्भ सूची (मुलायम घास) को खोद रहा है। इस प्रकार देखकर के वह पूछता है- तुम क्या कर रहे हो? उसने कहा- मैं इस दर्भसूची को खोद रहा हूँ। किस कारण ये खोद रहे हो? क्योंकि मैं इसके द्वारा बिध गया हूँ। कवि ने कहा उस स्थान को भर दो और क्षमा धरण करो। चाणक्य ने कहा, नहीं-नहीं मैं इसको तब तक खोदूँगा जब तक कि मूल जड़ के साथ यह ना उखाड़ दूतब तक बाधा पहुँचाऊंगा जब तक कि इसका सिर ना कट जाये। इस प्रकार सुनकर के कावि विचार करता है कि नन्दवंश का नाश करने के लिए यह योग्य पुरुष हैं। कावि अवसर की प्रतीक्षा करता है। एक बार चाणक्य की पत्नी यशस्वती कहती है-प्रिय! नन्द राजा कपिल गायों को (भूरी गायों को) ब्राह्मण के लिए दे रहा है तुम्हें भी ग्रहण कर लेना चाहिए। चाणक्य कहता है- कर लूँगा। एक बार राजा के द्वारा हजार गायों को प्रदान करने के लिए ब्राह्मण बुलाये गये। चाणक्य भी आया। कावि ने चाणक्य को अग्र आसन पर बैठा दिया। उसके साथ अन्य बहत से आसन भी लगे हुए थे। कुछ काल के बाद कावि कहता है-नन्द राजा का आदेश है कि अन्य ब्राह्मण आए हैं उनके लिए आसन पहले प्रदान किया जाये। इसलिए वह अन्य आसन पर बैठ गया। वहाँ से उठाकर भी अन्य आसन चाणक्य को दिया गया। इस प्रकार करके सभी आसनों से वह चाणक्य वंचित हो गया। कावि कहता है- मैं क्या करूँ? नन्द राजा को विवेक नहीं है। राजा आदेश देता है कि इस आसन को भी छोड़ देना चाहिए और तुम्हें इस स्थान से अन्यत्र चले जाना चाहिए। इस प्रकार कहकर चाणक्य का गला पकड़ करके बाहर सेवकों के द्वारा वह निकाल दिया जाता है।

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