Book Title: Dhamma Kaha
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti

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Page 60
________________ धम्मकहा 8859 (२०) कोण्डेश कथा कुरूमणि ग्राम में एक गोविन्द नाम का ग्वाला रहता था। उस ग्वाले ने एक बार कोटर के बीच में एक प्राचीन ग्रन्थ (शास्त्र) प्राप्त किया। बाद में भक्तिपूर्वक पद्मनन्दी मुनि को वह शास्त्र प्रदान कर दिया। उस शास्त्र का व्याख्यान पहले भी अनेक मुनियों के द्वारा किया गया था। और वह शास्त्र अनेक मुनियों के द्वारा पूजित था। गोविन्द निदान के साथ मरकर के उसी ग्राम में ग्राम प्रमुख का पुत्र हुआ। एक बार उन्हीं पद्मनन्दी मुनिमहाराज को देखकर के उसे जाति स्मरण हुआ जिससे वह तप को ग्रहण करके कोण्डेश नाम का शास्त्र में पारगामी मुनि हुआ। शास्त्र दान का यह फल जानना चाहिए। ב ב ב (२१) शूकर की कथा मालव देश में घट ग्राम में देविल नाम का एक कुम्हार रहता था। वहीं पर धमिल्ल नाम का एक नाई रहता था। उन दोनों ने पथिकों के विश्राम कराने के लिए एक धर्म स्थान का निर्माण कराया था। एक दिन देविल ने मुनि के लिए वहाँ प्रथम स्थान दे दिया। बाद में धमिल्ल भी एक परिव्राजक साधु को ले आया। धमिल्ल और परिव्राजक साधु ने उन मुनि को उस स्थान से बाहर निकाल दिया। मुनिमहाराज बाहर वृक्ष के नीचे रात्रि में बैठे रहे और दंशमसक, शीत आदि की बाधओं को सहन करते रहे। प्रातः क्रुद्ध हुए देविल ने धमिल्ल के साथ में युद्ध किया। देविल मरकर के विंध्याचल पर्वत पर शूकर हुआ और धमिल्ल मरकर के व्याघ्र हुआ। जिस गुफा में शूकर निवास करता था उसी में एक बार समाधिगुप्त और त्रिगुप्त नाम के दो मुनिमहाराज आये और वही पर ठहर गये। मुनि के दर्शन से देविल की पर्याय से आये उस शूकर को जाति स्मरण हो गया। जिस कारण से उसने धर्म श्रवण किया और व्रतों को ग्रहण किया। उसी समय पर मनुष्य की गंध को सूंघता हुआ वह व्याघ्र भी वहीं आ गया। शूकर मुनिरक्षा के निमित्त से गुफा के द्वार पर स्थित रहा। शूकर ने व्याघ्र के साथ पुनः युद्ध किया। दोनों ही परस्पर में यद्ध करके मरण को प्राप्त हुए। शूकर मुनिरक्षा के अभिप्राय से मरकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ। व्याघ्र मुनिभक्षण के अभिप्राय से मरकर नरक में गया। वसतिका दान का यह फल जानना चाहिए। נ נ נ

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