Book Title: Dhamma Kaha
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti

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Page 49
________________ धम्मकहा 048 (१६) जमदंडकोट्टवाल कहा आहीरदेसे णासिक्कणयरे राया कणयरहो णियदारकणयमालाए सह सुहेण जीवित्था। तस्स एगो जमदंडो णाम कोट्टवालो अत्थि। तस्स माया जोव्वणावत्थाए विहवा जादा। अइसुंदरी सा सणियं सणियं बहिचारिणी संभूदा। एगदिवसे ताए पुत्तबहूए अग्छ आभसणं दिण्णं । तं च णियकंठे सज्जिया सा रत्तीए पव्वसंकेदिदजारसमीवं गच्छमाणा आसि। जमदंडेण अंधयारे वि 'का वि सुंदरी' ति मुणिय एयंते उवभुत्ता। जमदंडेण तास आभूसणं गहिय सगकलत्तं समप्पिदं । तस्स कलत्तेण तमाभूसणं विलोइय वुत्तंइणमो दु महं अत्थि, मए सस्सूआ हत्थे धरणटुं दिण्णं । इत्थीए वयणं सुणिय तेण चिंतिदं- मए जाए सह उवभोगो कदो सा अम्ह माया खलु होहिदि । जमदंडेण मायाअ जारस्स संजोगट्ठाणे सयं गंतुण ताअ सेवणं पुणो कदं। ताहिं आसत्तो सो गढरीईए ककम्मे संलग्गों। तस्स वणिदा एवं कुकम्मं असहमाणा कोवेण रजियं कहेदि । सा रजिया मालिनि भणइ । सा पुणु राणिं बोल्लेदि । राणी राइणं णिवेदेइ । रण्णा तस्स कुकम्मस्स णिण्णयं गुत्तचरेण करिय कोट्टवालो दंडिदो। दंडदुक्खेण मरिय सो दुग्गदि लब्भइ। णिरयगदीए दुक्खं छेदणभेदणं वहो तिरिक्खेसु । देवगदीए रागो मणुवेसु बहु विवत्ती दिट्ठा॥ -अनासक्तयोगी २/९

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