Book Title: Dhamma Kaha
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti
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धम्मकहा 034
(११) णीलीकहा लाडदेसस्स भिगुकच्छणयरे राया वसुपालो णिविसिंसु। तत्थेव एगो जिणदत्तसेट्ठो वि सगित्थीए जिणदत्ताए सह णीलीणामपुत्तिं पालेइ। सा खलु अच्वंतरूववई गुणेहि सोहिदा आसि। एगो अण्णो वि सेट्ठो समुददत्तणामा सगजायाए सागरदत्ताए सह सागरदत्तणामसुणुं पोसेइ। एयदा महापूयाए अवसरे जिणमंदिरे सयलाभूसणेहि सज्जिदा णीली सागरदत्तेण दिट्ठा- अहो किं णु एसा सग्गकण्णा! ताहिं आसत्तो सो चिंतेइ- इमं कधं पावेज्ज, ताए चिंताए सो दुब्बलो होइ। तस्स दुब्बलदाए कारणं जदा पिउ समुद्ददत्तो सुणेदि तदा कहेदि हे पुत्त! जेण्हादो अण्णं कं वि तं जिणदत्तो विवाहटुं ण देदि। तदणंतरं कालंतरे कवडेण ते दोण्णि पिउपुत्ता जेव्हा जादा। णीली परिणीदा। विवाहाणंतरे ते पुणो बुद्धभत्ता संजादा । तेहि णीलीवहू पिअरस्स गिहं गच्छिउं णिसिद्धं । वंचिओ जिणदत्तो 'मे धूआ मुआ' इदि चिंतिय संतुट्ठो। पइप्पिया णीली जिणधम्मं पालती पुहगिहे पइणा सह णिवसेइ। समुददत्तस्स अइपयासेण वि णीली बुद्धधम्मे अणुरत्ता ण जादा। णणंदाए कोहवसेण परपुरिसाणुराइणी णीली त्ति दोसो दिण्णो। तदोसेण दुहिदा णीली जिणिंददेवस्स चरणमूले काउसग्गेण द्विदा होदि जं- 'एदस्स दोसस्स णिवारणं हवे तदा किल मे भोयणपाणे पउत्ती होहिदि ।' णयरदेवदाए रत्तीए कहिदं- हे सीलवंति! एवं पाणच्चागं मा कुणह । इत्थं कहिय देवदा राइणो सुमणं देदि जंणयरस्स मुक्खदाराणि कीलिदाणि होंति ताणि पइवदाए सीलवंतिवणिदाए वामपादफासेण उम्मुट्वियाणि होहिइरे। पादो तहा दिट्टण राया सुमिणाणुसारेण 'सव्वाओ इत्थीओ वामपादेण णयरद्वाराणि फुसंतु' त्ति घोसावेइ। सव्वाहिं तदा कदं किंतु पहाणबाराणि ण उम्मुद्विदाणि । अंते णीली परप्पओगेण तत्थ णीदा। ताअ चरणफासेण द्वाराणि णिक्कीलिदाणि होति। तदा णिद्दोसा णीली त्ति सव्वेहि अब्भुवगदा। एवं सीलपहावो णादव्यो।
मणाणुगूलं परिट्ठिदिभवणं खलु भग्गं।
-अनासक्तयोगी

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