Book Title: Dhamma Kaha
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti
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धम्मकहा 0036
(१२) जयकुमारकहा कुरुजंगलदेसे हत्थिणागपुरणयरे कुरुवंसी राया सोमप्पहो भयवंत-उसहदेवस्स काले पसिद्धो जादो। तस्स जयकुमारणामो पुत्तो अइबलवंतो भरहचक्किणो सेणावइरयणेण पदिट्ठिदो भवीअ। सो अइपुण्णवंतो वि परिग्गहपरिमाणवदं धरिय णियवणिदाए सुलोयणाए एव संतुट्ठो। एक्कसियं ते कइलासपव्वदे भरहचक्कवट्टिणा पइट्ठाविदेसु जिणालएसु वंदणाभत्तिकरणटुं गदा। तक्काले सोहम्मिंदेण सग्गे जयकुमारस्स परिग्गहपरिमाणवदं पसंसियं । तस्स परिक्खाकारणेण रइप्पहो देवो समागदो। तेण दिव्वकण्णारूवं धरिय चउहिं वणिदाहिं सह तस्समीवं गंतूण कहेदि- सुलोयणा-सयंवरसमए जेण तुमए सह जुद्धं कदं तस्स णमिविज्जाहररण्णो इमाओ चउरो राणीओ अच्चतरूववईओ णवजोव्वणाओ सयलविज्जासु पारगाओ णियसामिणो विरत्तचित्ताओ तुं कंखंति। इणं सुणिय जयकुमारो भणइ-हे सुंदरि! परइत्थी मे मायासमाणा। तदो देवित्थीहिं जयकुमारस्सुवरि बहुउवसग्गो विहिदो। तहावि तस्स चित्तं वियलियं ण जादं । रइप्पहो देवो सगमायं उवसंहरिय सव्वो समायारो जहा घडिदो तहा बोल्लेदि । तस्स पसंसणं कादूण वत्थाभूसणेहि पूयं करिय य सो सग्गं गदो।
सावयजणस्स धम्मो सदारसंतोसेक्क पदिलाहो य। भणिदो वरो संजमो पुज्जो सो देवमणुजेहिं ।
-अनासक्तयोगी १/६

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