Book Title: Dhamma Kaha
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti

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Page 36
________________ धम्मकहा 0035 (११) नीली की कथा लाट देश के भृगुकच्छ नगर में राजा वसुपाल निवास करते थे। वही पर एक जिनदत्त नाम का सेठ अपनी स्त्री जिनदत्ता के साथ नीली नाम की पुत्री का पालन करता था। वह नीली अत्यंत रूपवती व गुणों से शोभित थी। एक अन्य भी सेठ समुद्रदत्त नाम का अपनी पत्नी सागरदत्ता के साथ सागरदत्त नाम के पुत्र का पोषण करता था। एकबार महा पूजा के अवसर पर जिनमंदिर में समस्त आभूषणों से सजी हुई नीली सागरदत्त ने देखी-अहो! क्या ये कोई स्वर्ग कन्या है और वह उसमें आसक्त हो गया। वह || चिंतन करता है इसको कैसे प्राप्त किया जाए? उस चिंता से वह दुर्बल हो जाता है। उसकी दुर्बलता का कारण जब पिता समुद्रदत्त सुनते हैं तब कहते हैं कि हे पुत्र! जैनों के अलावा वह जिनदत्त उस पुत्री को विवाह के लिए किसी को नहीं देता है। तदनन्तर कुछ समय बाद कपट से वे दोनों पिता, पुत्र जैन हो जाते हैं। कालान्तर में नीली का विवाह हो जाता है। विवाह के बाद में वे पुनः बुद्ध भक्त हो जाते हैं। उन पिता-पुत्र के द्वारा नीली बहू को अपने पिता के घर जाने के लिए रोक दिया गया। ठगा गया जिनदत्त, मेरी पुत्री मर गई है इस प्रकार सोचकर के बुद्ध संतुष्ट हो गया। पति प्रिया नीली जिनधर्म का पालन करती हुई पृथक घर में पति के साथ निवास करने लगी। समुद्रदत्त के अति प्रयास से भी नीली बुद्ध धर्म में अनुरक्त नहीं हुई। ननद ने क्रोध के कारण 'यह नीली पर पुरुष में अनुराग करने वाली है' इस प्रकार का दोष उसके ऊपर लगा दिया। उस दोष से दुखित हुई नीली जिनेन्द्रदेव के चरण मूल में कायोत्सर्ग से स्थित हो गई। इस दोष का निवारण जब होगा तभी मैं भोजन पान में प्रवृत्ति करूँगी'। इस प्रकार नगर देवता के द्वारा रात्रि में कहा गया-हे शीलवंती! इस प्रकार प्राण त्याग मत कर। इस प्रकार कह कर के देवता रात्रि में राजा को स्वप्न दिखाता है कि- नगर के मुख्य द्वार कीलित है उनको कोई पतिव्रता शीलवती स्त्री जब बायें चरण से नगर के द्वारों को स्पर्श करेगी तभी वह द्वार खुलेंगे। प्रातः काल उसी प्रकार से देखकर के राजा ने स्वप्न के अनुसार सभी स्त्रियों के बायें चरण से द्वारों का स्पर्श कराया जाए' इस प्रकार की घोषणा करा दी। सभी के द्वारा ऐसा किया गया किंतु प्रधान द्वार नहीं खुले। अंत में नीली को वहाँ पर किसी के द्वारा ले जाया गया और उसके चरण के स्पर्श से द्वार निष्कीलित हो गए। तब 'नीली निर्दोष है' इस प्रकार से सभी ने स्वीकार किया। इस प्रकार शील का प्रभाव जानना चाहिए। मन के अनुकूल परिस्थिति का होना ही भाग्य है। अ.यो.

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