Book Title: Dhamma Kaha
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti

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Page 29
________________ धम्मका a 28 इदो ताव अण्णं घडदे । महुराए पूदिगंधरायणो उव्विलाराणी सम्मादिट्ठी जिणधम्मपहावणाए अणुरत्ता आसि । सा पडिवरिसं अहियपव्वे तिवारं जिणंददेवस्स रहजत्ताए पहावणं करावेइ । तण्णयरे सायरदत्तसेट्ठी समुद्वृत्तावणिदाअ सह णिवसीअ । तेसिं एया दरिड्वा पुत्ती जादा । कालविडंबणादो पिअरस्स मरणे जादे सा अणाहा जहा तहा जीविदं पालेइ । एगदिणे सा परगिहे णिक्खित्तभादं खाहीअ। तक्काले चरियाए पविट्ठा दो मुणिराया तं अवलोयंति । लहुमुणी जेट्टं पुच्छइ- आ ! महाकट्टे आओ जीवणं। इत्थं णिसुणिय जेट्ठी बोल्लइ - एसा एदस्स णयरस्स रण्णो पट्टराणी भविस्सए । एगेण बोद्धसाहुणा एवं सुणिय वियारिदं'मुणिवयणं अण्णहा ण हवे।' तदो तं सगठाणे णेइ सम्म पालेइ य । सा एयदा जोव्वणदसाए चेत्तमासे हिंडोले खेड्डित्था । दूरा राया तं विलोइय मोहेण खिण्णो जादो । तस्स मंतीहि सा जाचिया । बोद्ध भिक्खू कहेदि जदि राया मह धम्मं अंगीकरेदि तदा दास्सं, ण अण्णा । राआणेण सव्वं अब्भुवगदं । ताए विवाहं कादूण पट्टराणीपदे सा पट्ठाविदा । फागुणमासस्स गंदीसरपव्वदिणेसु उव्विला रहजत्ताए सव्वपयारेण परिक्कमइ । एवं णिरिक्खऊण बुद्धभत्ताए पट्टराणीए वृत्तं राय! अम्ह बुद्धभयवंतस्स रहो पढमं णयरे भमेदव्वो । राइणा भणियं एवमेव होहिदि । इदो उब्विला कहेदि 'जदि मइ रहो पढमं मे तदा मे भोयणे पडत्ती, ण अण्णहा।' इदि पइण्णं कादूण सा खत्तियगुहाए विराजमाणं सोमदत्ताइरियं समया आगच्छइ । तदाणिं वज्जकुमारमुणिसमीवं दिवायरदेवादओ विज्जाहरा वंदणाभत्तिकरणट्टं आगच्छिंसु । उव्विलाइ पत्थणं सुणिय वज्जकुमारमुणिणा विज्जाहरा कहाविज्जिसु - तुज्झेहिं उव्विलाए रहजत्ता पुव्वं करावेदव्वा । तदो विज्जाहरेहिं अण्णरहं भंजिय जिणिंदरहस्स रहजत्ता पुव्वं कारिदा । तमइसयं विलोइय सा बुद्धराणी राया अण्णजणा वा जिणिदिधम्मस्स भत्ता जादा ।

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