Book Title: Dhamma Kaha
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti
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धम्मकहा 2016
(५) जिणिंदभत्तसेट्ठकहा सुरट्ठदेसस्स पाडलिपुत्तणयरे राओ जसोहरो वरिवट्टइ। तस्स राणी णाम सुसीमा। तेसिं सुवीरो णाम पुत्तो अत्थि। पुत्तो सत्तविसणेसु संलग्गो अच्छइ। सो खु चोरपुरिसेहिं सेविदो हरिसइ। कदाचि तेण सुणिदं- 'पुव्वगोडदेसस्स तम्मलित्तणयरीए जिणिंदभत्तो णाम सेट्ठी णिवसइ। तस्स सत्तखण्डपासादस्स उवरि अणेयकोट्टवालेहि रक्खिदा सिरिपारसणाह-जिणिंदस्स पडिमा अत्थि। ताए उवरि छत्तत्तएसु अणग्यवेडूरिअमणिविसेसो लग्गेदि।' सुवीरेण चोरपुरिसा पुच्छिदा- किं कोवि मणिं लाउं समत्थोत्थि? सूरियणामचोरो बोल्लेदि उच्चसरेण- एअम्मि किं विसिटुं? हं तु इंदस्स मउडे चिट्ठमाणमणिं वि गहिदुं सक्केइ । एवं कहिय सो तत्तो णिग्गदो। कवडेण खल्लयभेसं धरिदुण कायकिलेसतवेण सव्वत्थ गामणयरेस खोहं कुणतो तम्मलित्तणयरीए समागदो। अइपसंसाए खोहं पत्तेण सेट्रिणा जदा तव्विसए सुदं तदा तत्थ गओ। दसणं किच्चा वंदित्ता वत्तालावं च करिय खुल्लयं सगगहे आणेज्ज। पासदेवस्स दंसणं काराविदा। तत्थेव ठाएं पत्थणा कदा। अणिच्छंतो वि मायाए सेट्ठी मणिरक्खियत्तेण तं णिउंजेदि। एयस्सिं दिवसे खुल्लयं णिवेदिय सेट्ठी समुद्दजत्ताए पट्ठिदवंतो। णयरत्तो बहि गंतूण सो ठादि । मज्झरत्तीए मणिं गहिय चोरखुल्लओ गच्छइ । मणिपयासेहि मग्गे गच्छंतो सो कोट्टवालेहिं दिट्ठो। ते तं गहिदुं पच्छा लग्गति । मे ण दाणिं को वि सरणं त्ति चिंतिय सो सेट्ठस्स सरणं पावेदि। रक्खहि रक्खहि त्ति भासिदं । कोट्टवालाणं सवं सुणिय सेट्ठी पुव्वावरवियारेण बोल्लइ- मे कहणेणेव एवं रयणं एत्थ आणेइ। तुम्हेहिं महावराहो कदो जं एवंविहतवस्सिणो चोरो त्ति घोसिदो। सेट्ठिवयणं पमाणं किच्चा ते कोट्टवाला पुणो पडिणिति। सेटेण रत्तीए चोरो अण्णत्थ पेसिदो। एवंपयारेण सम्मादिट्ठीहि बालासमत्थजणकारणेण मोक्खमग्गम्मि जणिददोसो णिवारेदव्वो।
जो जं इच्छदि पुरिसो तव्विसए खु रत्तिदिवं चिंतेदि। णिदाभोयणमण्णं कज्जं ण हि रोचदे रुइगो॥
-अनासक्तयोगी ३/१८

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