Book Title: Dhamma Kaha
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Jain Vidya Shodhalay Samiti

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Page 21
________________ धम्मकहा ee20 बारसवरिसपज्जतं सो पुष्फडालो वारिसेणमुणिणा सह विहरिय वड्डमाणसामिसमवसरणे समागदो। तत्थ तित्थयरदेवस्स कित्तीए देवेहिं गाणं गीदं जं खलु वड्डमाणसामिणो पुढवीए य संबंधे जादं। तं जहा मइलकु चेली दुम्मणी णा पवसियएण। कह जीवेसइ धणियधर डज्झते हियएण॥ पुष्फडालेण तं गीदं णियवणिदाए सह जंजिदं तेण तव्विसए उक्कंठिदो जादो। वारिसेणो तस्स मणट्ठिदिं जाणेदूणं टिदिकरणोवायं चिंतेदि। उवायं चिंतिय तेण णियघरे सो णेइज्जईअ। माअरचेलिणी विचारेइ- हंदि! 'वारिसेणो किं चारित्तेण खलिदो।' तदो परिक्खणटुं सा दोण्णि आसणाणि ठवेदि एक्कं सरागं अण्णं च वीयरागं। वारिसेणो वीयरायासणे संठविय बोल्लेदि- 'ममाणं अंदेडरं कोकिदव्वं ।' तक्काले चेलिणी णाणविहाभरणेहि सज्जिदाओ बत्तीसकंतकंताओ कोक्किय समक्खं समुट्ठाइत्था। तदणंतरं वारिसेणो कहेदि- भो पुष्फडाल! इमं इत्थिसमूहं मे जुवरायपदं च तुमं गिहसु। एवं सुणिय पुप्फडालो अच्चंतं लज्जिदो जादो पच्छा उक्कट्ठवेरग्गभरेण परमट्ठतवम्मि ट्ठिदो हूओ। נ נ נ वट्टदि सयं णिरीहो मोक्खपहे खलु पाट्टयदि अण्णे। सगपरतारणतरणी ण हि अण्णो गुरुसमो बंध। पारसमणी दु लोहं कुणदि सुवण्णं हु फासणे जादे। सणियं सणियं य गुरू अप्पसमो कुणदि सिस्साणं॥ -अनासक्तयोगी २/२०-२१

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