Book Title: Chamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh Author(s): Kshantivijay Publisher: Hirachand Kakalbhai Shah View full book textPage 9
________________ जो के हिंदी भाषानो अनभ्यास होवाथी अने मातृभाषा गुजराति होवाथी हिंदिमां लखबुं ते हास्यास्पद थशे एम जांणवा छतां पण उपरोक्त देशना लोकोने तेवी भाषा पण समजाशे एवी अनुभव सिद्ध खात्री थवाथी, तेवी भाषा लखवामां पण उत्साह थयो तो ते भाषाज्ञ पुरुषोए लेखकनी भाषाना दोष तरफ दृष्टि न करतां दोषोने दूर करी गुण ग्राही बनवा विनंति करवामां आवे छे तथा अंतरिक्ष पार्श्वनाथजोनी बोजीवारनी यात्रा करी. लुगार गाममां चोमासु थयु त्या ढुंढक साधु साथे विवाद थयो. कुपंथनु खंडन कयु. परिणाममां (१५०) दोहसो भाइयो बहेनोए ढुंढक पंथ छोडी ढुंढक पंथ सूचक तोबरो (मुहपत्ति) तोडी मिथ्या पडल फोडी सम्यक्त्व साथे प्रीति जोडो. सुद्ध देववीतरागनी मूर्तिने पूजता थया अने संवेगी गुरुने मानता थया, तथा होंदु धर्मना महान् गुरु कोलापुरना रहोश श्रीमत् शंकराचार्यजीनी सभामां. उपरोक्त ढुंढक मुनि पोताना धर्मनी प्राचीनताने सिद्ध न करी शकवाथी पलायन करी गया, तेथी मंदीर मार्गी लोकोने ढुंढक मतनी उत्पत्ति जा. णवानी इच्छा थइ अने घणो आग्रह करवायी ढुंढक मतनी हकीकतने प्रगट. करनार वंकचूलीया सूत्रनो टुकमां सारांश गुजराति भाषामां लखी, श्रेष्टी वर्य श्री हीराचरभाइ उपर (१० मा ग्रंथ तरीके मोकली आप्यो. आ ग्रंथ छपाववा दरम्यान मारो विहार चालु होवाथी सर्वे फरमाओ सुधारवा मोकलाइ शकाया-नही तेयी केटलेक स्थले विशेष अशुद्धि रही, माटे शुद्धि पत्र करचु परयुं छे तेयो मुद्धि पत्र जोइ सुधारी वाचवा तस्दी लेशो तो महेनत सफल www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, SuratPage Navigation
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