Book Title: Chamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh
Author(s): Kshantivijay
Publisher: Hirachand Kakalbhai Shah

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Page 57
________________ # नमः सिघम् अथ श्री अन्तरिद पार्श्वनाथ स्तुतिगर्जित श्री ___ मन्नाव विजयगणि विरचित स्वचरित्रका हिंदि लाषान्तर. लेखक:-पन्यासपद विभूषित श्रीमान् उमेदविजयजी गणि शिष्य मुनि श्रीक्षान्तिविजयजो. प्रणम्य श्री महावीरं, केवलज्ञान भास्करम् । रागद्वेषविजेतारं, ज्ञातारं विश्ववस्तुनः॥१॥ स्तुत्वा श्रीसद्गुरुं भत्त्या, उमेदविजयं गणिम् । यस्याऽभुवं प्रसादेन, बालोऽपि मुखरीतरः ॥२॥ स्मृत्वा सरस्वती देवी, जगजाडयविनाशिनीम् । यस्याः प्रसादयोगेन, समयज्ञानवानहम् ॥३॥ नत्वाऽनुयोगवृद्धेभ्यो, लिखामि देशभाषया । श्री अन्तरिक्षपार्श्वस्य, स्तुतिविवरणं मुदा ॥४॥ अर्थ-केवलज्ञानयुक्त, रागद्वेषकुं जितनेवाला, सर्व पदार्थकुंजाननेवाला, महावीरप्रभुकुं नमस्कार करके, जिस्का प्रसादसें बालपणेमें भी शास्त्रसम्मतभाषा वोलनेकी छुटवाला हुवा एसा श्रीमान् निजगुरु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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