Book Title: Chamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh
Author(s): Kshantivijay
Publisher: Hirachand Kakalbhai Shah
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हे नाथ ! आप फिरभी वहां चलों और संपूर्ण अंगकों उस्मै प्रक्षालन करो, वह पानीसे हि आपका कोंढ रोग जावेगा. ४२
इस तरहका रानीका वचनसे प्रतितीवाला होकर राजाने वहां जाकर श्री पाचप्रभुके पवीत्र पानीसें सर्वांगका प्रक्षालन किया. ४३
जेसें अग्निसें तत्काल सुवर्ण शुद्ध (निर्मल) होता है ऐसें वह पानीसें उस राजाका शरीर तत्काल निरोगी हुवा. ४४
उससे आश्चर्य पाया हुवा राणीसहित इलचराजा अन्नपान (खानापीना) छोडकर वह देवकी आराधना करने लग्गा. ४५
हे कूप ( वावडी) के भीतरका अधिष्ठाता ! हे हे क्षेत्रदेवता !! इधर जो कोइ होवे वह सकृपा मुजे दर्शन देवे. ४६
एसा बोलकर राजा बेठ गया और तिनदिन जानेपर उस्को दृढनिश्चयवाला देखकर वहा रह्या हुवा देव,-४७
प्रत्यक्ष ( स्वप्नमां) आकर एलचराजासें बोला. हे राजन् ! इधर ( यह कूपमें) खरदूषणराजाका रक्खा हुवा पाचप्रभुका बिंब ( मूर्ति ) विद्यमान है. ४८
वह मूर्तिका स्पर्शसें यह पानी महा पवीत्र हुवा है उस पानीसें स्नान करनेसे तेरा शरीर निरोगी हुवा है. ४९।
यह प्रतिमाका स्पर्शवाला पानीसें स्वास, खांसी, (खोकला) ज्वर (बुखार ) शूल और कुष्ट वगैरह असाध्य रोगोभी निश्चे विनाश होता है उसमें संदेह नही है. ५०
औरभी वह मूर्ति से स्पर्शा हुवा पानीसें अंधा पुरुष नेत्रोकों (पाताहै) बधिर कर्णविषयको; मूक मनुष्य, वाणीको, पंगु आदमी
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