Book Title: Chamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh
Author(s): Kshantivijay
Publisher: Hirachand Kakalbhai Shah

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Page 85
________________ माटे हे अग्निदत्त ! ते बावीस जीवो श्रावकपणु पामीने पण श्रुतनी हीलना करीने दुर्लभ वोधिपणुं पामशे, हवे अग्निदत्त मुनि गुरु महाराजने प्रणाम करी फरी पुछे, हे आर्य ! कहो ते श्रुतहेलना क्यारे यशे ! अने श्रुतनो उदय क्यारे थशे ! तेना उत्तरमा श्री यशोभद्रमूरिजी श्रुतनो उपयोग आपा कहे छे, हे अग्निदत्त ! हे महाभाग्य शालिन् ! श्रुतनी हेलना तथा उदयनो समय सांभलो:-श्रीवीरप्रभुना निर्वाणथी बसेने एकाणु (२९१) वर्षे संपति नामे राजा सवाक्रोड जिनप्रतिमा भरावशे तथा सवा लाख जिन मंदिर करावशे त्यार पछी सोलसें नवाणु वरसें ते दुष्ट वाणीया श्रुतर्नु अपमान करशे ते समये हे अग्निदत्त ? : , २९१ वीर १६९९ संव. संघ अने श्रुत राशिना नक्षत्र उपर आडत्री .१९९० ) श्रु-हो, ४७० विक. सं. समो धूमकेतु नामनो दुष्ट ग्रह लागशे, १५२० श्रु-ही. तेहनी स्थिति एक राशि उपर त्रणसे तेत्रीस (३३३) वर्षनी छे त्यार पछी संघनो अने श्रुतनो उदय थशे, एम यशोभद्र गुरुनां वचनो सांभलीने अग्निदत्त मुनिये, वैराग्य पामी प्रदक्षिणा देइ वारंवार गुरुमहारानने वंदन करीने २३२३ वी० सं. श्रु. उ, आचार्य महाराजने पुछिने अने मुगुरु ४७० ॐ श्रीभद्रबाहुस्वामि तथा संभूतिविजयने १८५३ विक्र०सं.श्रु. उ. पुच्छीने संलेखना करी अने ते मुनिवर प्रथम देवलोके गया ॥ २९१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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