Book Title: Chamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh
Author(s): Kshantivijay
Publisher: Hirachand Kakalbhai Shah
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श्रीपरमगुरुभ्योनमः श्री वंकचूलियासूत्र-सारांश.
लेखक-मुनि खान्तिविजयजी
भत्तिभर नमिय सुरवर सिरि, सेहर किरण रइय सस्सिरियं । नमिउं सिरिवीरपयं, वुच्छं सुयहीलणुप्पत्तिं ॥१॥
भक्तिना समुहे करी नमेला देवेंद्रोना श्रेष्ट मुगटनी कान्तिनी रचनाथी शोभायमान श्रीवीर प्रभुना चरणने नमिने श्रुतहेलनानी उत्पत्ति कहीश. श्रीवीर प्रभुना निर्वाणथी वीस (२०) वरसे श्री सुधर्मस्वामिनु निर्वाण थयु त्यारवाद चुमालिस (४४) वरसें चरम (छेला) केवली (केवलज्ञानी) श्री जंबूस्वामी सिद्धि पाम्या । त्यार बाद इग्यार (११) वरसें श्री प्रभवसूरि स्वर्ग गया, त्यार बाद त्रेवीस (२३) वरसे स्वयंभवसूरि स्वर्गे गया । त्यारपछी श्री स्वयंभवमूरिना शिष्य अने आगमना वेत्ता श्री यशोभद्रसूरिजी पृथ्वीमां विहार करता सावत्थी नगरीना कोष्टक नामा उद्यानमां समोसाँ। वे वखते द्वादशांगीना धरणहार श्री भद्रबाहुस्वामी अने संभृतिविजयजी ए बे शिष्यो सदा तेमनी पासे रहेता नित्य गुरु शुश्रुषा-सेवा करे छ । आ अवसरे अनिदत्तनामा श्री भद्रबाहुस्वामीना शिष्य मिथिला नगरीए लक्ष्मीक नामना उद्यानने विषे प्रतिमाए (काउसग्गध्याने) रहाछता तप आचरे के-करे छे । ते समये मद्य (दारु
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