Book Title: Chamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh
Author(s): Kshantivijay
Publisher: Hirachand Kakalbhai Shah
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दइने-ते बावीस गोठिल पुरुषो कर्मयोगे क्या उपन्या तथा कई योनिमंडलने विषे परिभ्रमण करस्ये तथा दुलभबोधि यस्ये एवं जोइने-निश्चय करीने अग्निदत्तनामा शिष्यने-आ प्रमाणे कहे-हे अग्निदत्त ! ते गोठिल पुरुषो तमने मारवा आवता हता ते पोते पो. तानी मेलेज मद्य मांसने परवशपणे अंधकूपमा पड्या अने मांहोमांहे तीक्ष्ण शस्त्रोथी अंगोपांग छेदावाथी आर्त तथा रौद्रध्यान व्याप्त तथा वारंवार कामलता गणिकाने इच्छता सुकृतनो क्षय थवाथी अन्तर्मुहुर्त्तमात्रमा तेवा अध्यवसाये करीने ते कामलता गणिकाना दक्षिण (जमणा) स्तननी बीटडोमां क्रमिनीयोनिमा (क्रमिपणे) उत्पन्न थया. (भव-२) त्यारबाद हे अग्निदत्त ! कामलता गणिकानी नानी बेटडीए ते गोठिल पुरुषो क्रमिपणे संक्रम्याथी अतुल-असह्य स्तननी वेदना उत्पन्न थइ. ते वेदनाथी पीडा पामती कामलता गणिका अनेक विद्वान वैद्योने स्तन देखाडती घणा मंत्र तंत्र औषध भैषज्ये उपचार करावती-औषध करती पिचरे त्यारे हे अग्निदत्त मुने! एक विद्वान् वैद्य तेनो उपाय जाणी शस्त्रक्रियाये करी स्तनने विदारीने-चिरीने तेमां बावीस क्रमि-कीडा-बेइंद्रिय जीव हाड-मांस रुधिरबद्ध हता तेमने काढी-छुटा पाडी पाणी भरेला भाजनमा मकिने कामलताने देखाडे तथा स्तनना मांस चर्मने सूत्रथी (दोराथ') सांधे अने संरोहिणी औषधिये समाधि पमाडे. त्यारे हे अग्निदत्त ! ते बावीस किडास्तनमांथी काढये छते, कामलता गणिका समाधि पामी तेथी ते वैद्यने घणा असन-पान-खादिम-स्वादिम-वस्त्र-माल्य-अलंकार विगेरे जीवे त्यां सुधी पहोचे तेटल भीतिदान देइने खुशी करीने
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