Book Title: Chamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh
Author(s): Kshantivijay
Publisher: Hirachand Kakalbhai Shah

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Page 41
________________ ३० निश्चित्यात्मनि मोहपाशमधुना सोछद्य बोधासिना, मुक्तिश्रीवनितावशोकरणसचारित्रमाराधय ॥ २४ ॥ शब्दार्थ-हे देहिन् ! त्हारुं अर्धं आयुष्य निद्रामा चाल्यु जाय छे अने बाकीचें अधु त्रण भेदथी चाल्युं जाय छे, ते त्रण भेदमां केटलुक बाल्यावस्थामां, केटलुक वृद्धावस्थामां अने केटलुक विषयादिव्यसनमा फोगट जाय छे, आ प्रमाणे तु आत्माने विषे निश्चय करी हमणां बोधरूप खड्गथी मोहपाशने कापी नाखी मुक्ति श्री रमणीने वशीकरण एवा उत्तम चारित्रने आराध. वृत्तविंशतिभिश्चतुभिरधिः सल्लक्षणेनान्वितः, ग्रंथं सज्जनचित्तवल्लभमिमं श्रीमल्लिषेणोदितम् ॥ श्रुत्वात्मेंद्रियकुंजरान्समटतो रुद्धंतु ते दुर्जयान् , विद्वांसो विषयाटवीषु सततं संसारविच्छित्तये ॥ २५ ॥ शब्दार्थ-श्री मल्लिषेण गुरुए उत्तम लक्षणवाला चोवीश काव्योवडे कहेला आ सज्जनचित्तवल्लभ नामना ग्रंथने सांभलीने पूर्वे कहेला संत पुरुषो संसारनो छेद करवा माटे विषयरूप अरण्यमां भटकता एवा दुर्जय इंद्रियरूप गजोने वश करो. ॥२५॥ ॥ इति सज्जनचित्तवल्लभं संपूर्णम् ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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