Book Title: Chamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh
Author(s): Kshantivijay
Publisher: Hirachand Kakalbhai Shah
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॥ अथ सज्जनचित्तवन्ननः ॥
नत्वा वीरजिनं जगत्रयगुरूं मुक्तित्रियो वल्लभ,
पुष्पेषुक्षयनीतबाणनिवहं संसारदुःखापहम् ॥ वक्ष्ये भव्यजनप्रबोधजननं ग्रंथं समासादहं,
नाम्ना सजनचित्तवल्लभमिमं शवंतु संतो जनाः ॥१॥
शब्दार्थ-त्रण जगत्ना गुरू, मुक्तिरूप लक्ष्मीना पति, कामना बाण समूहने क्षय करनारा अने संसारनां दुःखने नाश करनारा श्री वीर प्रभुने नमस्कार करीने भव्य माणसोने ज्ञान प्रगट करनारा आ सजनचित्तवल्लभ नामना ग्रंयने संक्षेपयी कहुं छु, तेने संत पुरुषो सांभलो ॥१॥
रात्रिश्चंद्रमसा विनाजनिवहैनों भाति पद्माकरो, यद्वत्पंडितलोकवजितसभा दंतीव दंतं विना ॥ पुष्पं गंधविवर्जितं मृतपतिः स्त्री चेह तद्वन्मुनिः, चारित्रेण विना न भाति सततं यद्यप्यसौ शास्त्रवान् ॥२॥
शब्दार्य-जेम रात्री चंद्र विना, तलाव कमलोना समूह विना, समा पंडितलोक विना, हाथी दांत विना, पुष्प गंध विना अने स्त्री पति विना नयी शोभती तेम जोके शास्त्रनो जाण एवो पण मुनि चारित्र विना शोभतो नयी ॥२॥
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