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हुए हैं, ऐसा राई मात्र भी कोई स्थान नहीं है जहां अनंत निगो क्या जीव नहीं रहते हों और वादर निगोदिया जीव पुद्गल आदि आधार का निमित्त पाकर विश्राम करते हैं। जो कि किसी जीव के शरीर रूप परिणत हुए विशिष्ट प्रद्गल और शरीर आकार नहीं परिणत हुए सामान्य पुद्गल इन दोनों प्रकार के पुद्गलों के आश्रय या आधार पर बादर निगोदिया जीव रहते हैं। वह पृथ्वीकायिक, जmaife, अग्निकायिक जीवों का शरीर तथा अरहंत केवली का शरीर आहारक ऋद्धिधारी मुनि का आहारक शरीर, देवों का शरीर और नारकियों का शरीर इन आठ जाति के शरीरों को छोड़कर शेष समस्त जीवों के शरीरों के आधार वादर निगोदिया जीव निवास करते हैं । उनमें जो अनादि काल से निगोद पर्याय को धारण किए हैं जिन्होंने आज तक भी निगोद के सिवाय अन्य स पर्याय नहीं पाई और न आगे पायेंगे उन्हें नित्यनिगोद कहते हैं, एक अत्यन्त भाव कलंक प्रचुर अत्यन्त दुर्लश्या रूप संक्लेश परिणामों की प्रचुरता (बहुलता) वाले जीवों ने अनादि काल से आज तक न तो निगोद पर्याय को छोड़ा है और न आगे अनन्त काल तक कभी भी छोड़ेंगे किंतु सदा काल निगोद रूप पर्याय को ही धारण किये रहेंगे । और जो जीव अल्प भाव कलंक प्रचुर होते हैं, उन्होंने यद्यनि आज तक निगोद पर्याय को नहीं छोड़ा है किंतु आगे जाकर और काल लब्धि को पाकर वे निगोद राशि से निकल कर स आदि की पर्याय को प्राप्त हो सकेंगे । ऐसे जोवों को भी नित्य निगोद कहा है
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चौपाई -- एक श्वास में अठ दश वार, जन्म्यो मरयो भयो दुःख भार । निकसि भूमि जल पावक भयो, पवन प्रत्येक वनस्पति थयो ।
अर्थ - - निगोबिया जीव एक श्वास में अठारह बार जन्म और मरण करता है, अर्थात्
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