Book Title: Chahdhala 2
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 10
________________ ल चौपाई --तास भ्रमण की हैं बहु कथा, पै कछु कहुं कही मुनि यथा । काल अनन्त निगोद मझार, बीत्यो एकेन्द्री तन धार ॥ ४ ॥ अर्थ - इस जीव के संसार में परिभ्रमण करने की बहुत लम्बी बड़ी कहानी है, परन्तु मैं उसे संक्षेप में कुछ कहता हूँ जो कि श्री गुरु ने कही है, कि इस जीव ने निगोव राशि में अनन्त काल एकेन्द्रीय के भव में शरीर को धारण कर समय बिताया ( निगोव तियंच गति में गर्भित है) वह त्रियंञ्च गति में पांच प्रकार के जीव राशि होते हैं-- एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंखेन्द्रिय, इनमें एकेन्द्रिय जीव राशि भी पाँच प्रकार के होते हैं । पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक. और वनस्पतिकायिक । बनस्पतिकायिक जीव राशि दो प्रकार के होते हैं, प्रत्येक शरीर वनस्पतिकःयिक और साधारण शरीर वनस्पतिकायिक । इनमें साधारण शरीर वनस्पतिकायिक जीवों को निगोद राशि कहते हैं। यह साधारण शरीर नामकर्म के उदय से जिन अनन्त प्राणियों के समान शरीर मिलता है और इस एक शरीर में रहने वाले अनंते जीवों का एक साथ हो आहार होता है, एक साथ ही सम श्वास- उच्छावास लेते हैं, और एक साथ ही उत्पन्न होकर एक साथ हो मरण को प्राप्त होते हैं। इन जीवों को साधारण शरीर वनस्पति निगोद कहते हैं, ये अनंत निगोदिया जीव जिस एक साधारण शरीर में रहते हैं वह शरीर इतना छोटा होता है कि हमारे नेत्रों से दिखाई नहीं देता और श्वास के अठारहवें भाग में निगोदिया जीवों के उत्पन्न होने या मरने पर भी निगोव शरीर ज्यों का त्यों बना रहता है, उसकी उत्कृष्ट स्थिति असंख्यात कोड़ा - कोड़ी सागर प्रमाण है । अब तक यह स्थिति पूर्ण नहीं हो जाती है तब तक इसी प्रकार उस शरीर में प्रतिक्षण अनंतानंत जीव एक साथ ही उत्पन्न होते हैं और मरते रहते हैं। यह एक सूक्ष्म निगोदिया जीव सारे लोकाकाश में ठसाठस भरे XXXXXX .

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