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आठ
rrदा
१९९८
कृति विवरण
रचनास्थल रचनाकाल
विक्रम संवत् ६. व्याख्यान पञ्चकम्
सरदारगढ २०२० प्राचीन जैन आख्यानक । श्लोक ११५४ । ७. अर्हत् स्तुतिस्तबकम्
___ बलून्दा १९९८ ० चतुर्विशतिस्तवनम् • जिनेन्द्रस्तोत्रम् ० जिनस्तुतिः
[शिखरिणी छन्द में ७७ श्लोक] ८. विवेकमहोदधिः
खींवाडा २०२२ जीवनोपयोगी शिक्षाएं।
[द्रुयविलंबित छन्द में ४१ श्लोक] ९. गुरुगुणोत्कीर्तनम् १०. विविधम्
.. सत्संगमाहात्म्यम् ० सरस्वतीसाहित्यसंवाद ० समयवैचित्यम् ० ध्यानाष्टकम् ० योगाष्टकम् ० साधकनवकम् ० दीक्षामहोत्सवाष्टकम् ० तेरापन्थस्तोत्रम् ० मर्यादास्वरूपनिदर्शनम् • तुलसीव्याख्यानामृतम् ० पट्टोत्सवसप्तकम् ० पादपूर्तिश्लोकाः
काव्यकार मुनि नत्थमलजी ने भारत के अनेक प्रदेशों की पद-यात्राएं की। सामान्य जन-जीवन को उन्नत करने का उपक्रम किया और सर्वत्र यशः प्राप्त किया। आप वाद-कला में भी निपुण थे। आपका जैन तत्त्वज्ञान प्रौढ और तलस्पर्शी था। आप जैन आगमों का बार-बार पारायण करते रहते थे।
आपने अपना अंतिम जीवन सुजानगढ में बिताया। आपके साथ छाया की भांति रहने वाले हम दो मुनि थे-मुनि सोहनलाल (खाटू) और मैं मुनि नगराज (सरदारशहर)। आपने हम दोनों को सुसंस्कृत किया, शिक्षा-दीक्षा दी और हमें संस्कृत भाषा लिखने-बोलने में सक्षम बनाया। इस महाकाव्य की प्रतिलिपि मुनि सोहनलालजी ने सुघड लिपि में की और मैंने उनके सहयोग से संपूर्ण महाकाव्य का हिन्दी भाषा में अनुवाद कर दिया। मैंने संपूर्ण अनुवाद काव्यकार मुनिश्री को सुनाया, यत्र-तत्र संशोधन किया और उसकी प्रतिलिपि तैयार कर ली।
मैं आज अपने सहयात्री, सहयोगी स्वर्गीय मुनिश्री सोहनलालजी की स्मृति करता हूं। यह औपचारिक स्मृति है। उन्हें भुलाया नहीं जा सकता।