Book Title: Bhavyajan Kanthabharanam Author(s): Arhaddas, Kailaschandra Shastri Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रन्थमें व्यर्थ विस्तार नहीं है । संक्षेपमें आवश्यक बातको निबद्ध करना ग्रन्थकारकी अपनी विशेषता है। और इस दृष्टीसे उनकी यह रचना उल्लेखनीय है। ग्रन्थकार अर्हद्दास इस ग्रन्थके रचयिताका नाम अर्हदास है जो ग्रन्थके अन्तिम पद्यमें दिया हुआ है। इनके बनाये हुए दो ग्रन्थ औरभी उपलब्ध हैं और दोनोंही प्रकाशित हो चुके हैं । उनका नाम है मुनिसुव्रत काव्य और पुरुदेव चम्पू । मुनिसुव्रत काव्यमें मुनिसुव्रतनाथ नामक तीर्थङ्करका और पुरुदेवचम्पूमें भगवान् ऋषभेदवका चरित वर्णित है।यों तो दोनोंही रचनाएं कवित्वकी दृष्टिसे आदरणीय हैं किन्तु पुरुदेवचम्पूकी गद्य तो महाकवि हरिचन्द्रकी गद्यसे टक्कर लेती है। दोनों काव्यरत्नोंके अवलोकनसे स्पष्ट है कि अर्हद्दास अच्छे कवि थे और उनके इस कवित्वके प्रभावसे उनका भव्यकण्ठाभरणभी अछूता नहीं है। किन्तु भव्यकण्ठाभरणसे उनके कवित्वकाही नहीं अपि तु बहुश्रुतत्त्वकाभी परिचय मिलता है। जैसा हम लिख आये हैं:'हिन्दू पुराणोंके वे पण्डित थे और उन्होंने उनका अच्छा अनुशीलनकिया था ' इसके सिवाय वे तार्किकभी थे और उन्होंने समन्तभद्रके आप्तमीमांसा आदि ग्रन्थोंका विशेष अध्ययन किया था ऐसा प्रतीत होता है । क्यों कि आप्तका स्वरूप बतलाते हुए उन्होने आप्तमीमांसाकी आप्तविषयक आरम्भिक कारिकाओंका पूरा अनुसरण किया है। तथा यद्यपि सागारधर्मामृतके रचयिता पं. आशाधरजीका स्मरण उन्होंने अपने तीनों रचनाओंमें अन्तमें बड़ी श्रद्धाके साथ किया है और उन्हींकी उक्तियोंसे अपनेको प्रबुद्ध हुआ बतलाया है, तथापि For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 104