Book Title: Bhavyajan Kanthabharanam Author(s): Arhaddas, Kailaschandra Shastri Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४ ) विषयका निर्देश अत्यन्त सुन्दर सम्बद्ध और संक्षिप्त ढंग से किया गया है । लिखा है 1 सर्वोऽप्यदुःखं सुखमिच्छतीह तत्कर्मनाशात्स च सच्चरित्रात् । सज्ज्ञानतस्तत्सुदृशस्तदाप्ताद्यास्थैव सा मे तदमुष्य वाच्या ॥ ९ ॥ इसके पश्चात् आप्तके स्वरूपकी चर्चा आरम्भ होती है और वह भी तर्कपूर्ण शैलीमें । आप्तकी पहचान के लिये आप्ताभासों बनावटी आप्तों को भी जान लेना आवश्यक है । अतः ग्रन्थकारने प्रायः सभी आप्ताभासों का विवेचन विस्तारसे किया है और अपने जानते हुए उन्होने किसीको छोड़ा नहीं है। क्योंकि शिव, शिवके परिकर गङ्गा, पार्वती, गणेश, वीरभद्र, ब्रह्मा, सरस्वती, नारद, त्रिष्णु, राम, परशुराम, बुद्ध, इन्द्र, आठों दिक्पाल, सूर्य, चन्द्रमा, बुध, मंगल आदि ग्रह, भैरव, सर्प, भैरवियां, गोमाता, पृथ्वी, नदी, समुद्र आदि जितने भी देवी देवताके रूपमें पूजे जाते हैं उन सभीकी समीक्षा की गई है। जैनोंभी वेताम्बर और यापनीयोंकी तथा ठेठ दिगम्बरों में से भी कष्ठा संधी, द्राविडसंघी, निष्पिष्छ संघी और निष्कुण्डिका संघवालोंकी आलोचना नहीं छोड़ी है । हिन्दू देवताओंकी समीक्षाको देखनेसे यह स्पष्ट है कि अदास हिन्दू पुराणोंके भी अच्छे ज्ञाता थे। क्यों कि उन्होंने जिस देवता के विषय में जो बात कही है वह सभी पुराणों में उपलब्ध है । अमूलक बात कोई नहीं पाई गई है । हिन्दू देवताओंकी आलोचना करते हुए बीचमें वैदिकी हिंसाकी भी चर्चा आगई है । और उसके सम्बंधसे मांस भक्षण और मद्यपानकी चर्चा करते हुए उन्हें निन्दनीय ठहराया है। मांस भक्षण For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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