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भक्तामर स्तोत्र
इन्द्रों ने, तीन लोक के चित्त को हरण करने वाले अनेक प्रकार के गम्भीर एवं विशाल स्तोत्रों से जिनकी स्तुति की है, आश्चर्य है, उन प्रथम जिनेन्द्रदेव श्री ऋषभदेव भगवान् की मैं भी स्तुति करूंगा।
टिप्पणी
ये दोनों श्लोक युग्म हैं। संस्कृत-साहित्य में युग्म उन श्लोकों को कहते हैं, जिनको अन्वय एक हो, अर्थपूर्ति की सूचक अन्तिम क्रिया भी एक हो। आप देख सकते हैं-प्रथम श्लोक में अन्तिम शब्द है, 'चरणों में भली-भाँति प्रणाम करके'इसके आगे अर्थपूर्ति की सूचक 'स्तुति करूमा', क्रिया की अपेक्षा है। और, वह क्रिया दूसरे श्लोक में है । अतः दोनों श्लोकों का अलग-अलग अर्थ न होकर सम्मिलित अर्थ होता है
भगवान् के चरणों में से इतना उज्ज्वल प्रकाश निकलता है, जो देवताओं के मुकुटों में लगी अमूल्य मणियों की प्रभा की भी प्रभा देता है। भगवान् के चरण कितने प्रभावान हैं । संसार की भौतिक विभूति कितनी ही विराट् क्यों न हो, आखिर वह आध्यात्मिक विभंति के द्वारा ही मंगलमय प्रकाश पाती है।
मानव सभ्यता के प्रारंभिक युग में, जबकि जैन-शास्त्रानुसार तीसरे आरक के अंत में कर्मभूमि का युग आरम्भ हो रहा था,
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