Book Title: Bhaktamara stotra
Author(s): Mantungsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra
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भक्तामर स्तोत्र
: ३५ :
परम धरम उपदेशन हेत ।
वर्ग- मोक्ष - मारम संकेत, व्यवचन तुम खिरें अगाध, सब भाषागर्भित हितसाध ॥
६६
दोहा
: ३६
·
विकसितसुबरनकमलदुति, नखदुति मिल चमकाहि । तुम पद पदवी जहै धरै तहँ सुर कमल रचाहिं ॥ : ३७ :
ऐसी महिमा तुम विषै सूरज में जो जोति है,
और धरै नहि कौय । नहि तारागन होय ॥
छप्पय
: ३८ ।
भंकारें ।
मद अवलिप्त कपोलमूल, अलिकुल तिन सुन शब्द प्रचंड क्रोध, उद्धत अति धारें ॥ हालवरन विकराल, कालवत सनमुख आवै । भय उपजावै ॥
रावत सो प्रबल, सकल जन
महिमा लीन ।
देख गयंद न भय करें, तुम पद विपतिरहित सम्पतिसहित, बरतें भक्त अधीन ॥
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